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27.8.09

......जब वो गाती है....


झुमती गाती और गुनगुनाती ग़ज़ल,

गीत कोई सुहाने सुनाती ग़ज़ल

ज़िंदगी से हमें है मिलाती ग़ज़ल,

उसके अशआर में एक ईनाम है,

उसके हर शेर में एक पैगाम है।

सबको हर मोड़ पे ले के जाती ग़ज़ल।

उसको ख़िलवत मिले या मिले अंजुमन।

उसको ख़िरमन मिले या मिले फिर चमन,

वो बहारों को फिर है ख़िलाती ग़ज़ल।

वो इबारत कभी, वो इशारत कभी।

वो शरारत कभी , वो करामत कभी।

हर तरहाँ के समाँ में समाती ग़ज़ल।

वो न मोहताज है, वो न मग़रूर है।

वो तो हर ग़म-खुशी से ही भरपूर है।

हर मिज़ाजे सुख़न को जगाती ग़ज़ल।

वो मोहब्बत के प्यारों की है आरज़ू।

प्यार के दो दिवानों की है जुस्तजु।

हो विसाले मोहब्बत पिलाती ग़ज़ल।

वो कभी पासबाँ, वो कभी राजदाँ।

उसके पहलु में छाया है सारा जहां।

लोरियों में भी आके सुनाती ग़ज़ल।

वो कभी ग़मज़दा वो कभी है ख़फा।

वक़्त के मोड़ पर वो बदलती अदा।

कुछ तरानों से हर ग़म भुलाती ग़ज़ल।

वो तो ख़ुद प्यास है फ़िर भी वो आस है।

प्यासी धरती पे मानो वो बरसात है।

अपनी बुंदोँ से शीद्दत बुझाती ग़ज़ल।

उसमें आवाज़ है उसमें अंदाज़ है।

इसलिये तो दीवानी हुई राज़ है।

जब वो गाती है तब मुस्कुराती ग़ज़ल।

2 टिप्पणियाँ:

क्या बात है............
ख़ूब
खूबतर...................
नायाब !

____मुबारक !

वो तो ख़ुद प्यास है फ़िर भी वो आस है।
प्यासी धरती पे मानो वो बरसात है

bahut badiya hai

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