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1.8.09

प्रहर





अंधेरे हैं भागे प्रहर हो चली है।

परिंदों को उसकी ख़बर हो चली है।


सुहाना समाँ है हँसी है ये मंज़र।

ये मीठी सुहानी सहर हो चली है।


कटी रात के कुछ ख़यालों में अब ये।

जो इठलाती कैसी लहर हो चली है।


जो नदिया से मिलने की चाहत है उसकी।

उछलती मचलती नहर हो चली है।


सुहानी-सी रंगत को अपनों में बाँधे।

ये तितली जो खोले हुए पर चली है।


है क़ुदरत के पहलू में जन्नत की खुशबू।

बिख़र के जगत में असर हो चली है।


मेरे बस में हो तो पकडलुं नज़ारे।

चलो राज़ अब तो उमर हो चली है।




2 टिप्पणियाँ:

Razia ji agar PRAHAR ho gai ho to turant PRAHARI rakh lijiye.

namaskaar rajiya ji bhut hi sundar yek behtreen prstuti
saadar
praveen pathik
9971969084

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