31.8.09
सरकारी टीम से हाथापाई, पांच नामजद
घर का "दीपक"
“ सुनती हो? अभी
अपने हाथों को रुमाल से पोंछती हुई निर्मला गभराई सी रसोई से
“ क्या है? चिल्लाते क्यों हो? आ जायेगा। कहकर तो गया है कि दोस्तों के साथ घूमने जा रहा हूं”।
“आज चौथा दिन है।
एक मेरी कमाई पे सारा घर चलाना है। बेटी की शादी कोई छोटी-मोटी बात थोडी है? प्रो.अनिल ने कहा”।
“शांत हो जाओ। इस बार उसे ठीक से समझाउंगी। आप परेशान न हो। बी०पी० बढ़ जायेगा। “निर्मला वातावरण को नोर्मल बनाने का
तभी राजुल की सहेली कल्पना घर
“क्या
”सुना!! ये दीपक ही हमारे घर में अँधेरा कर देगा,
“वे सब
.....कि
दीपक अपने बेडरूम की ओर चला गया। हाथों में वही सूटकेस थी, जो हर बार घूमने जाता तो ले जाया करता।
“ लो अब तो
कमाए और
शाम होने लगी थी। पर अभी
कनखियों से झाँकते हुए प्रोफ़ेसर अनिल ने माँ बेटी का संकेत देख लिया और
टी वी पर लोकल न्युज़ थी। “ लाली वाला किडनी
एक अन्जान
मुझे
आपने मुझे जन्म दिया है। मेरा इतना तो फ़र्ज़ है कि मैं आपके कुछ
प्रोफेसर अनिल बेड का
उन्हें लगा वो जल्दी बूढे होने चले हैं...............
युवक-युवति परिचय सम्मलेन एक अनुकरणीय पहल
30.8.09
क्या महिलाओं की नेतृत्व क्षमता - स्थानीय निकायों के चुनाव तक सीमित है !
जहाँ आधी आबादी महिलाओं की हो, किंतु सत्ता में भागीदारी उनकी आबादी के अनुपात में न हो तो कैसे कहेंगे देश की सरकार पूर्णतः लोकतान्त्रिक है? जो देश की आधी आबादी का प्रतिनिधितव करती है, उनकी समान भागीदारीके अभाव में क्या उनके हितों और हकों के अनुरूप नीतियां और योजनायें बन पाती होगी? - अभी तक महिलाआरक्षण का बिल का संसद में पास न होना इस बात का द्योतक है। संसद में महिलायें संख्या के मामले में पुरुषोंसे कमजोर पड़ रही है । जब महिला आरक्षण बिल का वर्षों से यह हाल है तो महिला के कल्याण और हितों केअनुरूप बनने वाले कानून अथवा योजनाये पूर्वाग्रहों से कितने मुक्त होते होंगे, इस बात अंदाज़ लगाना मुश्किल नहीहोगा । आजादी के ६२ वर्षों बाद भी महिलायें अपनी आबादी के अनुपात में संसद में अपनी हिस्सेदारी नही बनापायी ।
यदि सरकार और संसद वास्तव में महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु कृत संकल्प है तो उसे कुछऐसे कदम उठाने चाहिए । जैसे हो सके तो महिलाओं को पंचायत से लेकर संसद तक के चुनाव में प्रत्याशी के रूपमें खड़े होने हेतु प्रेरित करने के उद्देश्य से नामांकन फार्म भरने से लेकर चुनाव लड़ने तक का आर्थिक खर्च का वहन सरकार द्वारा किया जाना चाहिए । दूसरा यह कि सत्ता खिसकने एवं संसदीय सीट छिन जाने के डर से कोई नकोई अड़ंगा लगाकर महिला बिल को पास होने से रोका जाता है । अतः इसे अब नेताओं के हाथ से निकालकर सीधेजनता के बीच ले जाकर जनता द्वारा वोटिंग के माध्यम से इस पर फ़ैसला कराया जाना चाहिए । फ़िर देखें कैसे न पास होगा महिला आरक्षण का बिल । क्योंकि आधी आबादी और उससे अधिक का समर्थन मिलना तो निश्चित हीहै ।
आशा है कि इस तरह के गंभीर प्रयास यदि किए जायेंगे तो महिलाओं की सभी क्षेत्रों में उनकी आबादी के हिसाब सेसमान भागीदारी और हिस्सेदारी निश्चित रूप से सुनिश्चित हो पाएगी ।
29.8.09
छेड़खानी व अपहरण के प्रयास के आरोप में गिरफ्तार
महिलाओं ने किया महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन
28.8.09
कंप्यूटर अध्यापकों का धरना जारी
आखिर कब ले ले यह जान पता नही
दंगा:
चहकता हुआ चौराहा , महकता हुआ चौराहा ,,,
वहा उड़ती हुई पतंगे थी , घूमती हुई फिरंगे थी ....
सजती हुई मालाये थी,, लरजती हुई बालाये थी ,,,
चमकते चमड़े की दूकान थी,महकते केबडे की भी शान थी ,,
रफीक टेलर भी वही था , और हरी सेलर भी वही था ,,,
वहा पूरा हिन्दुस्तान था , हर घर और मकान था ,,
मेल मिलाप और भाई चारा था , कोई नहीं बेचारा था ,,
पर एक चीज वहा नहीं थी , जो न होना ही सही थी ,,
वहा नहीं था तो पुरम ,पुर और विहार नहीं था ...
वहा नहीं था तो दालान ,वालान और मारान नहीं था,,,
गली कासिम जान भी नहीं थी, और गली सीता राम भी नहीं थी ,,,,
वहा हिन्दू भी नहीं था , वहा मुसलमान भी नहीं था ,,
था तो केवल हिन्दुस्तान था , था तो केवल भारत महान था ,,
फिर एक आवाज आई मैं हिन्दू हूँ ,,
उसकी प्रतिध्वनी गूंजी मैं मुसलमान हूँ ,,,
और उस लय का गला घुट गया ,जो कह रही थी मैं हिन्दुस्तान हूँ ,,
सुनते ही सन्नाटा पसर गया ,,
उड़ते उड़ते हरी पतंग ने लाल पतंग मजहब पूछ लिया ,,
हरी ने रफीक के सीने में चाकू मार दिया ,,
सब्जियों में भी दंगा हो गया , अपना पन सरेआम नंगा हो गया ,,
बैगन ने आलू के कान में फुसफुसाया ,,मियां प्याज को पल्ले लगाओ ,,
कद्दू ने कुछ जायदा ही फुर्ती दिखाई,प्याज को लुढ़का दिया,,,
और वो पहिये के नीचे आ गया ,,
लहसुन ने मिर्ची को मसल दिया , क्यों की वो हिन्दू थी ,,
अब तो वहा पर कोहराम था ,क्यूँ की दंगा सरेआम था ,,
एक दूकान दूसरी दूकान से धर्म पूछ रही थी ,,
एक नुक्कड़ दूसरे नुक्कड़ से धर्म पूछ रहा था ,,
अब वहा पे वालान थे ,अब वहा पे मारान थे ,,
अब वहा पे पुरम था , अब वहा पे विहार भी था ,,
अगर कुछ नहीं था तो ,,
वहा पे हिन्दुस्तान नहीं था , मेरा भारत महान नहीं था ,,
अब वहा पर केवल हिन्दू था और मुसलमान था ,,
और वीरान ही वीरान था ,,
तभी किसी ने कहकहा लगाया और ताली बजाई ,,,
फिर उसने लम्बी साँस ली और ली अंगडाई,,
वो मुस्कराया क्यूँ की अब उसके मन का जहान था,,
फिर वह धीरे से बुदबुदाया मैं हिन्दू हूँ ,,
फिर वह धीरे से फुफुसाया , मैं मुसलमान हूँ ,,
और चल दिया अगले चौराहे पर,,
हिन्दुस्तान को हिन्दू और मुसलमान बनाने के लिए ,,
क्यों की यही तो उसका धर्म है और कर्म भी ,,
आखिर नेता जो है .....
प्रतिभाओं को अवसर - इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सराहनीय कार्य !
किंतु रियलिटी शो के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा लोगों को नैसर्गिक और स्वाभाविक प्रतिभा और हुनर के प्रदर्शन का अवसर प्रदान किया जा रहा है और वह भी फिल्मी क्षेत्रों के आलावा अन्य कला क्षेत्रों में।
कुछ अपवादों को छोड़ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की यह नई भूमिका अत्यन्त प्रशंसनीय और सराहनीय है, जो देश की प्रतिभाओं को प्रसिद्धि पाने और कला एवं हुनर के प्रदर्शन हेतु उचित मंच और अवसर प्रदान करने का कार्य कर रही है । युवा पीढियों के साथ सभी उम्र के कलाकारों अथवा प्रतिभाओं को रचनात्मक और सकारात्मक कार्यों की ओर प्रेरित कर रही है । इससे देश के सुदूर अंचलों एवं कोने-कोने में विद्यमान उभरती प्रतिभाओं की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से आशा कुछ ज्यादा बढ़ गई है । अतः इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कंधे पर भारी जिम्मेदारी आन पड़ी है कि स्वस्थ्य मनोरंजन के साथ-साथ देश की छुपी हुई प्रतिभाओं को प्रदर्शन का उचित अवसर बिना किसी पूर्वाग्रह के प्रदान कर सके । आशा है, मीडिया अपने जिम्मेदारी पर खरा उतरेगा और देश तथा समाज के लोगों की खुशहाली और प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेगा ।
27.8.09
20 पशु बरामद
......जब वो गाती है....
झुमती गाती और गुनगुनाती ग़ज़ल,
गीत कोई सुहाने सुनाती ग़ज़ल
ज़िंदगी से हमें है मिलाती ग़ज़ल,
उसके अशआर में एक ईनाम है,
उसके हर शेर में एक पैगाम है।
सबको हर मोड़ पे ले के जाती ग़ज़ल।
उसको ख़िलवत मिले या मिले अंजुमन।
उसको ख़िरमन मिले या मिले फिर चमन,
वो बहारों को फिर है ख़िलाती ग़ज़ल।
वो इबारत कभी, वो इशारत कभी।
वो शरारत कभी , वो करामत कभी।
हर तरहाँ के समाँ में समाती ग़ज़ल।
वो न मोहताज है, वो न मग़रूर है।
वो तो हर ग़म-खुशी से ही भरपूर है।
हर मिज़ाजे सुख़न को जगाती ग़ज़ल।
वो मोहब्बत के प्यारों की है आरज़ू।
प्यार के दो दिवानों की है जुस्तजु।
हो विसाले मोहब्बत पिलाती ग़ज़ल।
वो कभी पासबाँ, वो कभी राजदाँ।
उसके पहलु में छाया है सारा जहां।
लोरियों में भी आके सुनाती ग़ज़ल।
वो कभी ग़मज़दा वो कभी है ख़फा।
वक़्त के मोड़ पर वो बदलती अदा।
कुछ तरानों से हर ग़म भुलाती ग़ज़ल।
वो तो ख़ुद प्यास है फ़िर भी वो आस है।
प्यासी धरती पे मानो वो बरसात है।
अपनी बुंदोँ से शीद्दत बुझाती ग़ज़ल।
उसमें आवाज़ है उसमें अंदाज़ है।
इसलिये तो दीवानी हुई “राज़” है।
जब वो गाती है तब मुस्कुराती ग़ज़ल।
26.8.09
दहेज के लिए तंग करने के आरोप में पति गिरफ्तार
राशि हड़पने का मामला दर्ज
25.8.09
थाने में आयोजित किया रक्तदान शिविर
....तेरी यादें.....
मैं चुराकर लाई हुं तेरी वो तस्वीर जो हमारे साथ तूने खींचवाई थी मेरे परदेस जाने पर।
में चुराकर लाई हुं तेरे हाथों के वो रुमाल जिससे तूं अपना चहेरा पोंछा करती थी।
मैं चुराकर लाई हुं वो तेरे कपडे जो तुं पहना करती थी।
मैं चुराकर लाई हुं पानी का वो प्याला, जो तु हम सब से अलग छूपाए रख़ती थी।
मैं चुराकर लाई हुं वो बिस्तर, जिस पर तूं सोया करती थी।
मैं चुराकर लाई हुं कुछ रुपये जिस पर तेरे पान ख़ाई उँगलीयों के नशाँ हैं।
मैं चुराकर लाई हुं तेरे सुफ़ेद बाल, जिससे मैं तेरी चोटी बनाया करती थी।
जी चाहता है उन सब चीज़ों को चुरा लाउं जिस जिस को तेरी उँगलीयों ने छुआ है।
हर दिवार, तेरे बोये हुए पौधे,तेरी तसबीह , तेरे सज़दे,तेरे ख़्वाब,तेरी दवाई, तेरी रज़ाई।
यहां तक की तेरी कलाई से उतारी गई वो, सुहागन चुडीयाँ, चुरा लाई हुं “माँ”।
घर आकर आईने के सामने अपने को तेरे कपडों में देख़ा तो,
मानों आईने के उस पार से तूं बोली, “बेटी कितनी यादोँ को समेटती रहोगी?
मैं तुज में तो समाई हुई हुं।
“तुं ही तो मेरा वजुद है बेटी”
बस पर किया पथराव
जींद : हरयाणा के जींद जिले के सफीदों कसबे के पीर बाबा पर माथा टेकने आए श्रद्धालुओं की बस पर कुछ अज्ञात लोगों ने पथराव कर दिया, जिसमें बस के सारे शीशे टूट गए। उसके बाद उक्त लोगों ने बस में सो रहे बस के कंडक्टर व ड्राईवर की बुरी तरह से धुनाई कर डाली, जिसमें कंडक्टर व ड्राइवर घायल हो गया। दोनों घायलों को उपचार के लिए जींद के अस्पताल में लाया गया जहां हालत गंभीर देखकर घायलों को रोहतक रेफर कर दिया गया है। इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी गई है। पुलिस मामले की जांच में जुट गई है। जानकारी के अनुसार रविवार रात अंबाला से श्रद्धालुओं से भरी एक बस नंबर सीएच-03ई-2831 में सफीदों पीर बाबा पर माथा टेकने के लिए आई हुई थी। श्रद्धालु बस से उतरकर पीर बाबा के दरबार में जा चुके थे, जिसके बाद कुछ अज्ञात युवक आए और बस में सो रहे कंडक्टर सुशील व ड्राईवर सुरेश पर हमला कर दिया, जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए। जब उन्हे पीटने के बाद भी हमलावर शांत नहीं हुए तो बाद में हमलावरों ने बस पर पथराव कर दिया जिससे बस के सारे शीशे टूट गए। इस बारे में बस के मालिक मनदीप सिंह अंबाला वासी से फोन पर संपर्क साधा तो उन्होंने इस संदर्भ में कहा कि हर साल करीब 6-7 बसें श्रद्धालुओं की भरकर गूगा-मेड़ी, सफीदों व अन्य कई धार्मिक स्थानों पर माथा टेकने के लिए आती है। इसी प्रकार रविवार को भी सभी बसें गूगा-मेढ़ी व कई धार्मिक स्थानों से होकर सफीदों पहुंची थी, जिसके बाद रविवार रात करीब 11 बजे उन्हे सूचना मिली की उनकी बस पर पथराव कर दिया है और कंडक्टर व ड्राइवर के साथ मारपीट भी की गई है। सूचना पाते ही वह सफीदों पहुंचे और पुलिस में शिकायत की। उन्होंने बताया कि बस पर पथराव होने से उनको भारी नुकसान हुआ है।
मैं तेरे साथ - साथ हूँ.........
समझो तो , मैं ही जवाब हूँ ।।
उलझी हुई,इस ज़िन्दगी में।
सुलझा हुआ-सा तार हूँ।।
बैठे है दूर तुमसे , गम न करो ।
मैं ही तो बस, तेरे पास हूँ।।
जज्वात के समन्दर में दुबे है।
पर मैं ही , उगता हुआ आफ़ताब हूँ
रोशनी से भर गया सारा समा ।
पर मैं तो, खुद ही में जलता हुआ चिराग हूँ ।।
जैसे भी ज़िन्दगी है, दुश्मन तो नही है।
तन्हा-सी हूँ मगर, मैं इसकी सच्ची यार हूँ।।
जलते हुए जज्वात , आंखो से बुझेंगे ।
बुझ कर भी न बुझी, मैं ऐसी आग हूँ।।
कैसे तुम्हे बता दें , तू ज़िन्दगी है मेरी ।
अच्छी या बुरी जैसे भी, मैं घर की लाज हूँ ।।
कुछ रंग तो दिखाएगी , जो चल रहा है अब।
खामोशी के लबो पर छिड़ा , में वक्त का मीठा राग हूँ।।
कलकल-सी वह चली, पर्वत को तोड़ कर ।
मैं कैसे भूल जाऊ, मैं बस तेरा प्यार हूँ।।
भुजंग जैसे लिपटे है , चंदन के पेड़ पर ।
मजबूरियों में लिपटा हुआ , तेरा ख्बाव हूँ।।
चुप हूँ मगर , में कोई पत्थर तो नही हूँ।
जो तुम न कह सके, मैं वो ही बात हूँ
बस भी कर, के तू मुझको न याद आ ।
न वह सकेगा जो, में ऐसा आव हूँ।।
मेहदी न बारातै न सिन्दूर चाहिए ।
मान लिया हमने जब तुम ने कह दिया , मैं तेरा सुहाग हूँ।।
खुद को न समझना, कभी तन्हा और अकेला।
ज़िन्दगी के हर कदम पर , मैं तेरे साथ - साथ हूँ।।