राजस्थान में पिछली सरकार यानि बीजेपी के शासनकाल के दौरान आरक्षण की ऐसी आग लगी थी कि सुप्रीम कोर्ट को इस मसले पर हुई हिंसा को शर्मनाक करार देना पड़ा था। लेकिन उस वक्त कानून व्यवस्था के चलते सब कुछ ठीक हो गया। पर किसी ने ये न सोचा था कि आग बुझी नहीं सुलग रही है और अगर उस पर पानी न डाला गया तो वो फिर भड़क सकती है। राजस्थान में फिर से आरक्षण की मांग ने ज़ोर पकड़ा है। पिछड़ों को मजबूत करने के लिए शुरु हुए इस सिलसिले को आज लोगों ने हथियार बना लिया है। राजस्थान में आज गुर्जरों को आरक्षण चाहिए, तो मुसलमानों को तथाकथित अल्पसंख्यक होने का आरक्षण, यही नहीं, अब तो राजस्थान में जब सरकार ने ये तय कर दिया कि आरक्षण ज़रूर मिलेगा और वो भी पांच फीसदी तो ब्राह्मणों ने भी अपने लिए आरक्षण की आवाज़ उठा दी, लेकिन जाति के आधार पर नहीं और न ही पिछड़े होने के आधार और न ही अल्पसंख्यक होने का तमगा पहनकर, इन्होने मांगा है गरीब होने के नाम पर। शेष merajawab.blogspot.com पर पढ़ें......
1 टिप्पणियाँ:
आग भड़कती क्यूँ हैं ?
क्योंकि अगर आग पहले जलाई [[लगाई ]] गयी थी और राजनितिक रोटियां सकने केलीय गे हूँ s s s ss तैयार न था तो पहले की वो आग ठंडी नहीं की जाती बल्कि फिर से भड़काने के लिए कुछ अंगारे सुलगते छोड़ देते हैं , हाँ जरूरत बे जरूरत राजनितिक बीडी सुलगाते रहते हैं जिसे अंगारे सुलगते रहें |
पुराने जन-नेता मुर्ख नहीं थे की मंडल कमीशन की रिपोर्ट को अलमारी के पीछे कबाड़ खाने में दल भुला दिया | वे उस के दूरगामी परिणामों को जानते थे , आज उस मण्डल ने कितने रूप बदल कर कर समाज में कितना खडमण्डल डाला हुआ है ?
पिछड़ा, फिर पिछड़ा में भी पिछड़ा, फिर उसमें भी अति पिछड़ा ,यार ये तो किसी ''सेल या तत्व '' की आन्तरिक संरचना की खोज की कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया लग रही है |
अभी तो एक रूप बताना बाकी है , '' तथाकथित धरती - पुत्र '' सीधे-सीधे कहें तो पहले प्रान्त वाद फिर इलाकावाद ,?
भगवान खुदा गोड इन पराश्रयी नेताओं को सलामत रखे घुरुच - घुरुच मरने लायक लम्बी उ मर बख्शे ये और भी बहुत से रूप देखने को मिलेंगे |||
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