क्यों कैसी रही?आज?
बड़ा ग़ुरूर था अपने आप पर!!
आज नर्म हो गये ना? वक़्त कब और कैसे अपना रुख़ बदलेगा किसी को पता नहिं है।
और फ़िर अहंकार तो सबसे बूरी बात है।
सब कोइ कहता था कि आप से ही मैं हुं। आप के बिना मेरा कोइ वज़ुद नहिं।
मैं हमेशाँ ख़ामोश रहा।
या कहो कि मेने भी स्वीकार कर लिया था कि आप के आगे मैं कुछ भी नहिं।
लोग कहते थे कि मेरा मिज़ाज ठंडा है और आप का गर्म।
ख़ेर मैं चुपचाप सुन लिया करता था क्योंकि आप की गर्मी से मैं भी तो डरता था।
भाइ में छोटा हुं ना!
पर आज मैं तुम पर हावी हो गया सिर्फ दो घंटों के लिये ही सही।
सारी दुनिया ने देख़ा कि आज तुम नर्म थे छुप गये थे एक गुनाहगार कि तरहाँ।
थोडी देर के लिये तो मुज़े बड़ा होने दो भैया!
पर एक बात कहुं मुज़े आप पर तरस आ रहा था जब लोग तमाशा देख रहे थे तब!
मैं आप पर हावी होना नहिं चाहता था।
पर मैं क्या करता क़ुदरत के आगे किसी का ना चला है ना चलेगा।
बूरा मत लगाना।
देख़ो आज आप पर आइ इस आपत्ति के लिये सभी दुआ प्रार्थना करते है।
लो मैने अपनी परछाई को आप पर से हटा लिया।
आपको छोटा दिखाना मुज़े अच्छा नहिं लगा।
क्योंकि मैं “चंदा” हुं और तुम “सुरज”।
बड़ा ग़ुरूर था अपने आप पर!!
आज नर्म हो गये ना? वक़्त कब और कैसे अपना रुख़ बदलेगा किसी को पता नहिं है।
और फ़िर अहंकार तो सबसे बूरी बात है।
सब कोइ कहता था कि आप से ही मैं हुं। आप के बिना मेरा कोइ वज़ुद नहिं।
मैं हमेशाँ ख़ामोश रहा।
या कहो कि मेने भी स्वीकार कर लिया था कि आप के आगे मैं कुछ भी नहिं।
लोग कहते थे कि मेरा मिज़ाज ठंडा है और आप का गर्म।
ख़ेर मैं चुपचाप सुन लिया करता था क्योंकि आप की गर्मी से मैं भी तो डरता था।
भाइ में छोटा हुं ना!
पर आज मैं तुम पर हावी हो गया सिर्फ दो घंटों के लिये ही सही।
सारी दुनिया ने देख़ा कि आज तुम नर्म थे छुप गये थे एक गुनाहगार कि तरहाँ।
थोडी देर के लिये तो मुज़े बड़ा होने दो भैया!
पर एक बात कहुं मुज़े आप पर तरस आ रहा था जब लोग तमाशा देख रहे थे तब!
मैं आप पर हावी होना नहिं चाहता था।
पर मैं क्या करता क़ुदरत के आगे किसी का ना चला है ना चलेगा।
बूरा मत लगाना।
देख़ो आज आप पर आइ इस आपत्ति के लिये सभी दुआ प्रार्थना करते है।
लो मैने अपनी परछाई को आप पर से हटा लिया।
आपको छोटा दिखाना मुज़े अच्छा नहिं लगा।
क्योंकि मैं “चंदा” हुं और तुम “सुरज”।
5 टिप्पणियाँ:
सामयिक विषय पर बहुत बढ़िया. कृपया अपनी सृजनात्मकता से इस साईट के पाठकों को लाभान्वित होने का मौका देते रहा कीजिये. धन्यवाद !
वाह सदी के खूबसूरत लम्हे को लाजवाब तरीके से जिया है अपने.............. इस रचना के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया
वाह रजिया जी वाह बहुत खूब ,मुहं से बरबस वाह निकाल दे ,मैं तो फक़त एक शायरा और ब्लॉगर मात्र समझ रहा था , मगर यह पहलू ,अब तो आप से बच के सम्हलके रहना होगा मोहतरमा ,जो सूरज की भी खिंचाई कर सकता है उसके आगे हम नाचीज़ क्या हैं | हा हा हा हा .................
umda baat
umda kavita
badhaai !
रजिया जी देरी के लिए माफ़ी चाहता हूँ पर मैंने उस दिन अपनी राय दी थी पर सायद सेव नहीं हुई खैर सामायिक विषय पर बहुत उम्दा रचना है मेरी बधाई स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
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