-- दुनिया की इस भीड़ में,खुद को तन्हा पाती हूँ ,,,ना गम मेरा कम होता ,,,,,,ना आंसू बहने रुकते है,,,,हर उम्मीद छिन्न हो जाती है,न कोई अपना लगता है,सूरज की हर एक किरण,,,,अब और अँधेरा फैला जाती ,,,,बादल की हर एक चींख,बस मेरी ही करुणा गाती ...मीठे स्वर नहीं है भाते,,,मुझको,मातम का रंग ही भाता है,बेबसी हसी उडाती है ,,,,और खामोशी रुला जाती,,,,,अब हर एक मौसम,खोया-खोया सा लगता है,चारो तरफ कुहासा है ...सब सोया सोया सा लगता हैजाने क्यूँ उनसे रंजिश होती ,,जिनको सब मिल जाता है ,,,हमने तो बस खोया है ,,और खोना ही भाता है,,हम जिन्हें याद करते है हरपल,क्या उनके...