देशप्रेम, राष्ट्रहित जैसे शब्दों का प्रयोग हम सब बहुतायत में करते हैं। और यह भी आमतौर पर कहते रहते हैं कि अब लोगों को अपनी संस्कृति, अपने समाज अपने देश से प्यार नही रहा।
परन्तु क्या कभी अपने गिरेबान में झाँककर देखा है कि इन बातों को लेकर हम ख़ुद कितने गम्भीर हैं?
दोस्तों, कह देने तथा कर देने के अंतर को समझना होगा।
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2 टिप्पणियाँ:
बिलकुल सही कहा आपने इसलिए दूसरों को शिक्षा देने से पहले खुद आगे बढ़िए...
सत्य वचन . इसी बात की आगे बढ़ाते हुए कहूँगा की हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषायों का प्रयोग -लिखने में व् बोलने में- करना चेयेह ताकि भारतीय भाषायों को प्रोत्साहन मिले.
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